निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

प्याज़

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नए सफर की ओर चली लेकर सरपर अपना ताज नज़र-नज़र को धता बताकर उछल रही है प्याज हॉथों से छू भी ना सकें रसोई को आए लाज आंसू बिन अंखिया पथर...
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रविवार, 19 दिसंबर 2010

मन चिहुंका

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शब्दों को होठों से भींचकर भावना की सीपी को मींचकर कल्पनाएँ व्यथा की मीत हुईं बात - बेबात नाराज़गी की रीत हुई धड़कनों से धड़कनों को खींच...
बुधवार, 15 दिसंबर 2010

रूसवाई

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आज शबनम भी उबलने लगी है रोशनी भी बर्फ सी लगने लगी है इस सुबह का खो गया आफताब सांसो में आह सी चलने लगी है ज़िंदगी रूसवा हुई पग खोल गई ब...
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

आप जैसे पढ़नेवालों संग

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गुम होकर गुलिस्तॉ में छुप जाना चाहिए लेकर नई खुश्बू रोज़ गुनगुनाना चाहिए करवट बदलती ज़िदगी कब कर जाए क्या पुरवट सा खुशियों को अब बहाना च...
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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

मिल रहे हैं द्रोन

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कौन है सम्पूर्ण और अपूर्ण कौन सागर की लहरें मंथर पहाड़ मौन ज़िंदगी के वलय में एकरूपता कहॉ तलाशते जीवन में मिल रहे हैं द्रोन एकलव्यी चेतनाए...
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क्यों इतनी दूर हो गईं

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अर्चनाएँ अब एक दस्तूर हो गई खुशियाँ हक़ीकत की नूर हो गई ; इंतज़ार अब तपती धरती सा लगे बदलियॉ ना जाने क्यों मगरूर हो गई एक आकर्षण सहज या ...
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

मुलाकात नहीं होती है

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अब कहीं और कोई बात नहीं होती है भ्रमर-फूलों में अब सौगात नहीं होती है भावनाएं भी प्रदूषित हो रहीं उन्माद के तीरे धड़कनों की शर्मीली मुलाक...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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