निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

मिल रहे हैं द्रोन

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कौन है सम्पूर्ण और अपूर्ण कौन सागर की लहरें मंथर पहाड़ मौन ज़िंदगी के वलय में एकरूपता कहॉ तलाशते जीवन में मिल रहे हैं द्रोन एकलव्यी चेतनाए...
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क्यों इतनी दूर हो गईं

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अर्चनाएँ अब एक दस्तूर हो गई खुशियाँ हक़ीकत की नूर हो गई ; इंतज़ार अब तपती धरती सा लगे बदलियॉ ना जाने क्यों मगरूर हो गई एक आकर्षण सहज या ...
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

मुलाकात नहीं होती है

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अब कहीं और कोई बात नहीं होती है भ्रमर-फूलों में अब सौगात नहीं होती है भावनाएं भी प्रदूषित हो रहीं उन्माद के तीरे धड़कनों की शर्मीली मुलाक...
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एक शाम

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शाम की तलहटी में, आहटों का सवेरा है डूबते सूरज की मूरत में, छिपा वही चितेरा है शाम की ज़ुल्फें खुली, हवा भी बौराई है धड़कनें बहकने लगी, चाहत...
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बुधवार, 1 दिसंबर 2010

गुंईया बन गए हम

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अभी भी सलवटें सुना रहीं हैं दास्तान  मौसम ने ली थकन भरी अंगड़ाई है चादर में लिपटी   देह गंध भी बुलंद है एक अगन हौले से  गगन उतर आई है म...
मंगलवार, 30 नवंबर 2010

शब्दों से छलके शहद

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शब्दों से छलके शहद फिर हद कहॉ वेदना तब गेंद सी लुढ़कती जाए एक छाया बाधाओं को नापती पग से चढ़े एक सिहरन हंसती नस में उछलती जाए भावों के ...
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सोमवार, 29 नवंबर 2010

हम ढूंढते हैं खुद को

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कब-कब लगी है आग, दिल की दुकान में बोल रही हैं चिपकी राख, मन के मचान में. पहले जब था तन्हा तो, थी तनहाई की जलन मनमीत की तलाश में, थी मिश...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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