निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

शब्दों से छलके शहद

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शब्दों से छलके शहद फिर हद कहॉ वेदना तब गेंद सी लुढ़कती जाए एक छाया बाधाओं को नापती पग से चढ़े एक सिहरन हंसती नस में उछलती जाए भावों के ...
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सोमवार, 29 नवंबर 2010

हम ढूंढते हैं खुद को

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कब-कब लगी है आग, दिल की दुकान में बोल रही हैं चिपकी राख, मन के मचान में. पहले जब था तन्हा तो, थी तनहाई की जलन मनमीत की तलाश में, थी मिश...
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रविवार, 28 नवंबर 2010

मेंहदी

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खिल-खिल हथेलियों पर, मेहँदी खिलखिलाए रे अपनी सुंदरता पर, प्रीत बिछी जाए रे, कुहक रही सखियॉ सब, कोयलिया की तान सी हिय में नया जोश भरा, छलक...
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शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

हुस्न की साजिश

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एक हुस्न की साजिश है एक अदा की है रवानगी सब कुछ निखर रहा है दे दी क्या यह दीवानगी अपनी डगर की मस्तियों में बिखरी रहती थी चॉदनी तारों ...
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गुरुवार, 25 नवंबर 2010

विवाहेतर सब्ज बाग

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जब भी मिलतें हैं, होती हैं सिर्फ बातें एक दूजे से हम खुद को छुपाते हैं घर गृहस्थी की हो जाती है चर्चा ना वह रुकते ना हम कह पाते हैं जी...
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बुधवार, 24 नवंबर 2010

जब से मिला हूं...

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जब से मिला हूँ आपसे, रूमानियत छा गई है खामोशी भाने लगी है, इंसानियत आ गई है. खयालों में, निगाहों में, चलीं रिमझिमी फुहारें वही बातें, वह...
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मंगलवार, 23 नवंबर 2010

चाँद, चौका, चांदनी

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चाँद चौके बैठ गया चांदनी लाचार बेपहर का भोजन यह कैसा अत्याचार आसमान हलक गया फैलाया अरुणाई सितारों ने निरखने को बांध ली कतार चंदा बोला ...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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