निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

सोमवार, 22 नवंबर 2010

देह देहरी

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देह देहरी पर क्यों बैठे बन प्रहरी पंखुड़ी पर बूंद कुछ पल है ठहरी अपलक क्यों हैं खुद को थकाईएगा जड़वत रहेंगे या मन तक जा पाईएगा कशिश है ...
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रविवार, 21 नवंबर 2010

एक अर्चना निजतम हो तुम

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सुंदर से सुंदरतम हो तुम, अभिनव से अभिनवतम हो तुम आकर्षण का दर्पण हो तुम, शबनम से कोमलतम हो तुम: ऑखों में वह शक्ति कहॉ जो, सौंदर्य तुम्हारा...
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शनिवार, 20 नवंबर 2010

उड़ न चलो

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उड़ न चलो संग मन पतंग हो रहा है देखो न आसमान का कई रंग हो रहा है एक तुम हो सोचने में पी जाती हो शाम फिर न कहना मन क्यों दबंग हो रहा है आ...
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शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

कीजिए सबको साधित

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आधुनिकता भव्यता का शीर्ष मचान है परंपराएं मुहल्ले की लगे एक दुकान है द्वंद यह सनातनी फैसला रहे सुरक्षित इसलिए हर मोड़ का निज अभिमान है ...

अपनत्व

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लिए जीवन उम्र की भार से एक हृदय ईश्वरी पुकार से जीवन के द्वंद्व की ललकार से बुढ़ापे को दे रहा अमरत्व है ले आकांक्षा स्वप्निल सत्कार से ...
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गुरुवार, 18 नवंबर 2010

अबूझा यह दुलार है

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मन के हर क्रंदन में, वंदनीय अनुराग है नयन नीर तीर पर, सहमा हुआ विश्वास है, अलगनी पर लटका-लटका देह स्नेह तृष्णगी ज़िंदगी अलमस्त सी, लगे कि...
मंगलवार, 16 नवंबर 2010

मुहब्बत ना नकारा जाये

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दर्द भी दिल के दायर को खूब सजाये बेकरारी बेख़ौफ़ बढ़ती ही चले जाये हवाओं की नमी में कैसा यह संदेसा टीस उभरे और टपकने को मचल जाये अंजुरी भ...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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