निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

सोमवार, 15 नवंबर 2010

दिल

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कहीं उलझ कर अब खो गया है दिल खामोशी इतनी लगे कि सो गया है दिल ख़ुद में डूबकर ना जाने क्या बुदबुदाए नमी ऐसी लगे कि रो गया है दिल मेरे ही...

मंज़िल

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मुझको मिली है मंज़िल, खुशियॉ मनाऊँगा लम्हों को रोक लूँगा, और गीत गाऊँगा, ऐसी भी चाहते हैं जो, मिलती नहीं दोबारा चंदन की चॉदनी में, चंदा स...
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रविवार, 7 नवंबर 2010

अपने तलक ही रखना

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अपने तलक ही रखना, कहीं ना बात निकल  जाए है अपना यही राज, कहीं ना   बात फिसल  जाए लोगों के दरमियॉ,,खुली किताब का वज़ूद क्या एक ज...
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शबनमी बारिश

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आज जब शाम से, तनहाई में मुलाकात हुई रात ढलने से पहले, चॉदनी मेरे साथ हुई, कुछ उजाले और कुछ अंधेरे से, मौसम में डूबते सूरज से, सितारों ...
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आँखें

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बहुत सीखती रहती है ज़माने से आँखें ढूँढती रहती नयी राह जमाने में आँखें होठों पर बिखरी है, मुस्कराहट हरदम दर्द कोरों मे छुपा लेती हैं, नट...
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

प्यार की छुवन

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आज फिर से चाहतों की, मखमली पुकार है दिल का दिल से लिपटने का, आज त्यौहार है, आपके कदमों ने मुझे, बख्शी है एक ज़िंदगी गुगुनाते लम्हों में...
गुरुवार, 4 नवंबर 2010

पनाह-पनाह-पनाह

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अब नज़र किसकी और कैसी भला चाह की है हमने भी मुहब्बत, वाह-वाह-वाह. कई गुलदस्ते भी कुम्हला गए, छूकर मुझे जला गई एक आग बोल, चाह-चाह-चाह. ...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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