उचित अब यही रुचि ज्ञान दीजिए
मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए
उचित अब यही है रुचि ज्ञान दीजिए
मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए
प्रत्येक में कुछ श्रेष्ठता और विशिष्टता
हर एक की अलग पहल तौर श्रेष्ठता
समाज न हो विचलित ध्यान दीजिए
मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए
दिल के कमरे में नित व्यग्र चहलकदमी
मस्तिष्क है घिरा होकर तिक्त अग्र वहमी
संताप है पदचाप बन आघात नचनिए
मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए
एक दिया लौ से जले अनेक दिया लौ
मानवता भ्रमित हो आपके रहते क्यों
आप में अपार शक्ति व्यक्ति मान भजिए
मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए।
धीरेन्द्र सिंह
19.07.2025
03.50