देह दलन
कैसा चलन
व्यक्ति श्रेष्ठ
आवश्यकता ज्येष्ठ
विवशता लगन
कैसा चलन
प्रदर्शन परिपुष्ट
प्रज्ञा सुप्त
वर्चस्वता सघन
कैसा चलन
शौर्य समाप्त
चाटुकारिता व्याप्त
अवसरवादिता मनन
कैसा चलन
देह परिपूर्णता
स्नेह धूर्तता
प्यार गबन
कैसा चलन।
धीरेन्द्र सिंह
तिरस्कृत प्यार
जानबूझकर हो
या हो अनजाने में,
यादें उठती
भाप सरीखी उड़ती
घर हो या मयखाने में;
सुंदर हो बाहुपाश
हो समर्पित विश्वास
यादें मिले तराने में,
कौन बहेलिया
बहलाए सांस
बदले निजी जमाने में;
अनुगामी यादें
टूटे ना वह नाते
त्यजन गरमाने में,
वशीकरण वशीभूत
भावनाओं का द्युत
जीवन को भरमाने में;
दूरी कैसी
लिप्सा मजबूरी जैसी
चाहतें हर जाने में,
जानेवाले जाएं कहां
यादों से रहे नहा
युग्मित गुसलखाने में।
धीरेन्द्र सिंह