तुम मुझे टूटकर जिस दिन गुनगुनाओगी
अपने दामन में मेरे अस्तित्व को पाओगी
पहल कर नारी को इंगित करना न आदत
तुम मेरी होगी जैसे हो सूफियाना इबादत
मुझे छूकर तुम नव रचनाकार बन जाओगी
अपने दामन में मेरे अस्तित्व को पाओगी
छुवन मन का है होता यूं ही चर्चित है तन
विपरीत लिंगी आकर्षण प्राकृतिक चलन
मुड़ जाऊंगा यदि मुझे निःशब्द उलझाओगी
अपने दामन में मेरे अस्तित्व को पाओगी
वह होते और जो करते नारी का पीछा
न चाहे नारी तो कोई स्पंदन नहीं होता
मुझे विश्वास मेरे भावों को समझ पाओगी
अपने दामन में मेरे अस्तित्व को पाओगी।
धीरेन्द्र सिंह
25.10.2024
20.58
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