जब दिए में रहे छलकता घी-तेल
रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल
इधर-उधर न जलाएं भूल पंक्तियां
किधर-किधर देखिए हैं रिक्तियां
अनुरागी उत्तम विभेद का क्यों खेल
रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल
एक जलाए फुलझड़ी दूजा सुतली बम
कही दिया लौ कहीं बिजली चढ़ खम्ब
एकरूपता में भव्यता खिले जस बेल
रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल
एक माला सुंदर गूंथे बहुरूप बहुरंग
एकताल सुरताल संगीत दिग-दिगंत
दीपोत्सव आत्मउत्सव ना पटाखा खेल
रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल।
धीरेन्द्र सिंह
29.10.2024
13.23
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