रचित हो गए शेष फिर भी है रचना
हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना
कहां कोई रुकता है जब तक स्पंदन
समय रचता मुग्धकारी नव निबंधन
हर एक प्राण चाह नित जीवंत बहना
हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना
हृदय कब कहा अब तरंगें नहीं हैं
कल्पना कब कही अब उमंगें नहीं है
अभिलाषा अछूता हंसा आज गहना
हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना
कह ही दिया कहन की लगी अगन
घेरेबंदी में है मौन प्रतीक्षारत गगन
मोहित पुलकित हुआ पढ़ मन अंगना
हर भाव कह रहा फिर कैसा कहना।
धीरेन्द्र सिंह
13.08.2024
12.17
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