बुधवार, 24 अप्रैल 2024

सोहबत

 शब्दों से यारी भावनाओं से मोहब्बत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


खयालों में खिलते हैं नायाब कई पुष्प

हकीकत में गुजरते हैं लम्हें कई शुष्क

लफ़्ज़ों में लज्जा अदाओं का अभिमत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


वक़्त बेवक्त मुसलसल जिस्म अंगड़ाईयाँ

एक कसक कि कस ले फ़िज़ा अमराइयाँ

वह मिलता है कब जब होता मन उन्मत्त

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


जब छुएं मोबाईल तब उनका नया संदेसा

लंबी छोटी बातों में अनहोनी का अंदेशा

कितना भी संभालें हो जाती है गफलत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


बेफिक्र बेहिसाब मन डूबे दरिया-ए-शवाब

इश्क़ की सल्तनत पर बन बेगम, नवाब

एहसासों की सांसें झूमे सरगमी अदावत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत।


धीरेन्द्र सिंह


24.04.2024

10.01

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