शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

दीजिए

 उचित अब यही रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


उचित अब यही है रुचि ज्ञान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


प्रत्येक में कुछ श्रेष्ठता और विशिष्टता

हर एक की अलग पहल तौर श्रेष्ठता

समाज न हो विचलित ध्यान दीजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


दिल के कमरे में नित व्यग्र चहलकदमी

मस्तिष्क है घिरा होकर तिक्त अग्र वहमी

संताप है पदचाप बन आघात नचनिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए


एक दिया लौ से जले अनेक दिया लौ

मानवता भ्रमित हो आपके रहते क्यों

आप में अपार शक्ति व्यक्ति मान भजिए

मानवता न बिखरे निजी ज्ञान दीजिए।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2025

03.50

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें