गुरुवार, 12 सितंबर 2024

कविता

 हर दिन

नहीं हो पाता

लिखना कविता,


चाहती है प्यार

एक उन्मादी आलोडन

कभी आक्रामकता

तो कभी सिहरन,


जलाती है फिर

संवेदनाओं की बाती

और उठते

भावनाओं के धुएं

बन जाते हैं कविता

लिपट चुनिंदा शब्दों से,


किसी दिन अचानक

कभी कंधे पर तो

कभी सीने पर

लुढ़क जाती है कविता

कुछ सुनने

कुछ गुनने,


बन सखी

रहती ऊंघाती

बन अनुभूति संचिता

हर दिन

नहीं हो पाता

कविता लिखना।


धीरेन्द्र सिंह

11.09.2024

08.15

मजबूरियां

 बिगड़ जाए बातें, यह कड़वी मुलाकातें

फिर कैसे कहे जिया, यह प्यार है

तर्क पर प्यार को बांधने की कोशिश

क्या यही प्रणय का उत्सवी त्यौहार है


एक बंधन का स्तब्ध बोले शांत क्रंदन

मन परिणय में यह कैसा अभिसार है

समझौता न्यौता घरौंदा आसीन लगे

कैसा का कैसी पर फैलता अहंकार है


डोर की टूटन को जोड़े है सामाजिकता

घोर रिक्तता में कैसी लहर हुंकार है

सलीके से छुपाने में हैं माहिर मजबूरियां

जी रहे हैं जीने का कैसा चलन धार है।


धीरेन्द्र सिंह

12.09.2024

20.56