बूंदों ने शुरू की जब अपनी बोलियां
सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां
सड़कों पर झूमता था उत्सवी नर्तन
हवाएं भी संग सक्रिय गति परिवर्तन
बदलियों का उत्पात मौसम बहेलिया
सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां
सरपट भाग रहीं, दौड़ रहीं लक्ष्य कहीं
पहाड़ियां गंभीर होकर कहें ताक यहीं
थीं सड़कें खाली हवा-बूदों की सरगर्मियां
सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां
प्रकृति का यह रूप जैसे भव्य समारोह
बूंदें आतुर दौड़ें असहनीय विछोह मोह
सब सिखाती प्रकृति जीवन के दर्मियाँ
सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां।
धीरेन्द्र सिंह
28.08.2024
08.14