बुधवार, 24 जुलाई 2024

अबकी सावन

 मैं चाहूं लेख लिख भारमुक्त हो जाऊं

या तो पोर-पोर भाव कविता रच जाऊं

तुम ही कह दो प्रणय संवेदिनी इस बार

अबकी सावन को कैसे में और रिझाऊं


इस बयार में देखो तो कितनी बेचैनी

बूंदे हर लेती बन मादक शीतल पैनी

पौधे, परदे, लटें तुम्हारी जैसे लहराउं

अबकी सावन को कैसे मैं और रिझाऊं


जब देखूं तुम रहती काम में सदा व्यस्त

बदरा-धरती बाहें थामे लगते हैं मस्त

भावों से कहते रहती बात समझ न पाऊं

अबकी सावन को कैसे मैं और रिझाऊं।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

09.21


ढीठ

 ढीठ बड़ा लगता है बरसात का पानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


शहर धुल जाता छप्पर सहित मकान

आप भी नई लगतीं ले स्व अभिमान

सावन सरीखा सुहानी सी जिंदगानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


कभी दूर लगें, बदलियां रचित व्योम

कभी मन श्लोक सा, पावन बन होम

प्यार शुचिता में जल, अगन तानातानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


मन की सर्जना में तन की हो गर्जना

सावनी बयार है या आपकी अभ्यर्थना

मन बहके विवेक घुड़के उम्र क्यों नादानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

09.05